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गणपति विसर्जन का विरोध उचित नहीं, हिंदूओं को बांटने की साज़िश : आलोक गिरी

धूमधाम से विदा हो भगवान गणेश, सड़कों पर उमड़ा आस्था का सैलाब

षंडयंत्रकारी तत्त्वों के बहकावें न आयें, जमकर उठायें उत्सवों का आनंद : मनकामेश्वर गिरी
हरिद्वार। श्री सिद्धपीठ बालाजी धाम, सिद्ध बलि हनुमान, नर्मदेश्वर महादेव मंदिर, जगजीतपुर से भगवान गणेश की मुर्ति को हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से विदा किया गया। विदाई समारोह में डीजे की थाप नाचते गाते हुए एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर शुभकामनाएं दी। सड़कों पर उमड़े भक्तों के सैलाब को देखकर लोग आनंद विभोर हो गए। गंगा की गोद में मुर्ति विसर्जन के साथ गणपति महोत्सव का भी समापन हो गया।‌

गौरतलब है कि श्री सिद्ध बलि हनुमान नर्मदेश्वर महादेव मंदिर निकट फूटबाॅल ग्राउंड जगजीतपुर कनखल हरिद्वार में गुरुवार को धूमधाम से भगवान गणेश की मुर्ति को गंगा में विसर्जित किया गया। मंदिर के पीठाधीश्वर स्वामी आलोक गिरी महाराज के सानिध्य में विगत 10 दिनों चल रहे गणपति महोत्सव का समापन हो गया। अब श्राद्ध पक्ष के उपरांत शारदीय नवरात्र उत्सव की तैयारियां शुरू की जायेगी। आलोक गिरी महाराज ने कहा कि मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र होते हैं। इसलिए सदैव धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन चलते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि गणपति विसर्जन को लेकर बेवजह बवाल मचाया जा रहा है। इसे वें सरासर ग़लत मानते है।
हिंदुओं को भ्रमित करने के लिए जानबूझकर किया जा रहा है ताकि हिंदू समाज एकत्र होकर उत्सव का आनंद ना ले सके।
बताते चलें कि गणेश चतुर्दशी पर धूमधाम से गणपति का पूजन करने के उपरांत गाजे बाजे के साथ नाचते गाते हुए भक्तों ने भगवान गणेश की प्रतिमा का मां गंगा की गोद में विसर्जित किया। इस मौके पर बाबा मनकामेश्वर गिरी महाराज ने कहा पिछले 10 दिनों में श्रद्धालुओं ने गणपति महोत्सव का जमकर आनंद प्राप्त किया और विसर्जन के उपरांत पितृ पक्ष की तैयारियों में जुटेंगे। उन्होंने कहा सनातन धर्म में व्रत एवं पर्वों का विशेष महत्व है। लोग एकजुट होकर आनंद उठाते हुए। लेकिन धर्म विरोधियों के द्वारा हिंदुओं को भ्रमित करने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र किए जा रहा है।‌ हर उत्सव में कुछ न कुछ ऐसा नया प्रचारित किया जा रहा कि लोग उत्सव का आनंद छोड़कर व्यर्थ के विवादों में उलझे रहें। गणेश विसर्जन को लेकर ऐसा ही नया भ्रम फैलाया गया कि भगवान गणेश का विसर्जन नहीं किया जाना चाहिए। जबकि सच ये है ऐसे उत्सवों में विसर्जन का विधान रहता है। । चाहे गणेशोत्सव हो, नवरात्र हो या श्रावण के समय पार्थिव शिवलिंग पूजन का उत्सव हो। मनकामेश्वर गिरी महाराज ने कहा प्रत्येक अवसर पर विसर्जन का विधान है। वैसे प्रतिवर्ष इतने विग्रहों को कोई रखेगा कहाँ? लोग क्या ये चाहते हैं कि लोग इतने विशाल स्तर पर उत्सव मनाएँ ही न?मूलतः सनातन विरोधी यही चाहते हैं कि हिन्दू उत्सवों के नाम पर जो संगठित हो जाते हैं उन्हें भ्रमित कैसे किया जाए।
किसी भ्रम में न पड़ें। ऐसे में सभी सनातन धर्मावलंबियों से निवेदन है कि आनन्दपूर्वक उत्सव मनाइए और उत्सा

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