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बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है होली: स्वामी रामभजन वन जी महाराज।

हरिद्वार/डरबन। विश्व में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाले श्री तपोनिधि पंचायती अखाड़ा निरंजनी के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन जी महाराज कहा कि सनातन धर्म में त्योहारों और उत्सवों का विशेष महत्व है। ये पर्व और त्योहार संस्कृति, परंपरा और संस्कार के संरक्षण और संवर्धन के साथ ही सामाजिक एकता के प्रतीक हैं। इन त्योहारों में होली के त्योहार का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को होली का त्योहार मनाया जाता है। इस वर्ष होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा। इसके अलावा होली से एक दिन पहले 13 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा और 7 मार्च से होलाष्टक शुरू हो गए हैं।होलिका दहन के दिन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हुआ था। इस बार होलिका दहन की तिथि 13 मार्च दिन गुरुवार को सुबह 10:35 बजे से शुरू होगी और तिथि 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे समाप्त होगी। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च रात 11:26 बजे से शुरू होगा और समय 14 मार्च को दोपहर 12:30 बजे समाप्त होगा। होलिका दहन के दिन भद्रा का साया सुबह 10:35 बजे से शुरू होगा और रात 11:26 बजे तक खत्म हो जाएगा, जिसके बाद होलिका दहन किया जाएगा। इस दिन भद्रा का साया करीब 13 घंटे तक रहेगा। होलिका दहन के बाद राख को घर लाने और उसका तिलक लगाने की भी परंपरा है। कई जगहों पर इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है। कथा के अनुसार राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसने बालक प्रह्लाद को ईश्वर भक्ति से विमुख करने का काम अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई। लेकिन प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति और ईश्वर की कृपा से होलिका स्वयं अग्नि में जल गई। आग में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। तभी से होली के पहले दिन होलिका दहन किया जाता है। अगले दिन फागोत्सव, रंगोत्सव मनाया जाता है।

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