
देहरादून/हरिद्वार।पुलिस मुख्यालय की ओर से 18 सितंबर 2025 को जारी आदेश आज भी कई जिलों में काग़ज़ों में कैद होकर रह गया है। आदेश में स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि जिन 110 थानों को निरीक्षक श्रेणी के रूप में उच्चीकृत किया गया है, वहाँ थाना प्रभारी के तौर पर केवल निरीक्षक स्तर के अधिकारी ही नियुक्त किए जाएँ। लेकिन ज़मीनी हालात इससे बिल्कुल उलट हैं—कई जिलों में आज भी निरीक्षक स्तर के थानों को उपनिरीक्षक चला रहे हैं।
पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक द्वारा जारी पत्र में साफ उल्लेख है कि वर्ष 2025 में 58 अतिरिक्त थानों को निरीक्षक श्रेणी में उच्चीकृत किए जाने के बाद कहीं भी उपनिरीक्षक को प्रभारी बनाना नियम विरुद्ध है। इसके बावजूद जिलों से लेकर सर्किल स्तर तक इस आदेश का पालन न तो दिख रहा है और न ही किसी प्रकार की जवाबदेही तय की गई है।

सूत्र बताते हैं कि अधिकांश जिलों में पर्याप्त संख्या में निरीक्षक उपलब्ध हैं, फिर भी कई थानों में उपनिरीक्षकों को प्रभारी बनाकर रखा गया है। सवाल यह उठता है कि जब अधिकारियों की कमी नहीं है तो नियमों की अनदेखी क्यों? क्या यह लापरवाही है, पदस्थापन में मनमानी है या फिर आदेशों को हल्के में लेने की पुरानी परंपरा?

मुख्यालय ने जिलों को निर्देश दिया था कि सभी उच्चीकृत थानों में निरीक्षक स्तर के ही अधिकारी तैनात किए जाएँ और इसकी रिपोर्ट तत्काल भेजी जाए, लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक कई जिलों से नहीं पहुंची है।
स्थानीय पुलिसकर्मियों का कहना है कि थानों का निरीक्षक स्तर पर संचालन ज़िम्मेदारी, विवेचना और कानून-व्यवस्था प्रबंधन के लिहाज से ज़रूरी है। उपनिरीक्षक स्तर पर थानों को चलाना न सिर्फ प्रशासनिक ढांचे का उल्लंघन है बल्कि कानून-व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न खड़े करता है।
अब देखना यह है कि मुख्यालय का ये आदेश धरातल पर उतरता है या फिर यह आदेश भी पुरानी परंपरा की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।




