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ट्रेन से कटकर शिशु हाथी की मौत — 38 साल की 33 मौतें बताती हैं कि सिस्टम से कहीं बड़ी है ये समस्या

हरिद्वार। सोमवार सुबह हुआ ताज़ा हादसा सिर्फ एक शिशु हाथी की मौत नहीं है, बल्कि यह उस गंभीर महामारी का हिस्सा है जो राजाजी टाइगर रिजर्व से गुजर रहे रेलवे ट्रैक पर पिछले चार दशकों से चली आ रही है। हावड़ा-दून एक्सप्रेस (13009) की चपेट में आए 6–8 वर्ष के इस शिशु हाथी की मौत ने एक बार फिर वन्यजीव सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सुबह 6:31 बजे… वही पुराना ट्रैक, वही गलियारा — और फिर एक जान गई

घटना मोतीचूर–रायवाला के बीच हुई, जहाँ हाथियों का झुंड ट्रैक पार कर रहा था। हावड़ा-दून एक्सप्रेस तेज़ी से योगनगरी स्टेशन की ओर बढ़ रही थी। झुंड के हाथियों ने तो ट्रैक पार कर लिया, लेकिन पीछे चल रहा शिशु हाथी ट्रेन से टकराकर मर गया।

घटना के बाद दिल्ली–आनंद विहार वंदे भारत को रायवाला स्टेशन रोका गया, वहीं लोको पायलट और सहायक लोको पायलट पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें हिरासत में लिया गया है।

लेकिन सवाल यह है—
क्या हर बार ट्रेन ड्राइवर पर कार्रवाई कर देने से समस्या खत्म हो जाएगी?

आज का हादसा नहीं, एक लंबा इतिहास है — और ये इतिहास कड़वा है

राजाजी टाइगर रिजर्व के बीच से गुजरता यह रेलवे ट्रैक हाथियों की मौतों का सबसे खतरनाक ज़ोन बन गया है।

**38 साल में 33 हाथी ट्रेन की चपेट में आए—

और हर मौत के साथ सिर्फ दावे बदले, जमीन पर हालात नहीं।

2023 में सीतापुर फाटक के पास एक हाथी मरा

2021 में दो हाथी मारे गए

2020 में नकरौंदा और हर्रावाला में हादसे हुए

2016, 2017, 2018 में बार-बार घटनाएं दोहराई गईं

2001 में एक ही साल चार हाथियों की मौत

1983 से अब तक कुल 33 हाथियों की जान गई

यह संख्या सिर्फ आंकड़ा नहीं—
यह इस बात का सबूत है कि व्यवस्था में कहीं न कहीं गहरी चूक है।

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